भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGeet}}
<poem>
::मेरे किशोर, मेरे कुमार!  अग्निस्फुलिंग, विद्युत् के कण, तुम तेजपुंजतेज पुंज, तुम निर्विषाद,
तुम ज्वालागिरि के प्रखर स्रोत, तुम चकाचौंध, तुम वज्रनाद,
तुम मदन-दहन दुर्धर्ष रुद्र के वह्निदीप्त वह्निमान दृग के प्रसाद, :तुम तप-त्रिशूल की तीक्ष्ण धारतीक्ष्णधार! ::मेरे किशोर, मेरे कुमार!  
तुम नवजाग्रत उत्साह, तीव्र उत्कंठा, उत्सुक अथक प्राण,
तुम जिज्ञासा उद्दाम, विश्व-व्यापक बनने के अनुष्ठान, ;
उच्छृंखल कौतूहल, जीवन के स्फुरण, शक्ति के नव-निधान,
:तुम चिर-अतृप्ति, अविरत सुधार। ::मेरे किशोर, मेरे कुमार! अक्षय संजीवन-प्रद मद से कर अंतर्तर भरपूर, शूर, तुम एक चरण में भय, चिंता, संदेह, शोक कर चूर-चूर; प्राणों की विप्लव-लहर विश्व में पहुंचा देते दूर-दूर!:तुम नवयुग के ऋषि, सूत्रधार। ::मेरे किशोर, मेरे कुमार!उन्मत्त प्रलय की तन्मयता तुम, तांडव के उल्लास-हास,युग-परिवर्तन की आकांक्षा, उच्छृंखल सुख की तीव्र प्यास;तुम वन्य-कुसुम, तुम नग्न-प्रकृति की पावनता की मुग्ध-वास,:तुम आडंबर पर पद-प्रहार!::मेरे किशोर, मेरे कुमार!
अक्षय संजीवन-प्रद मद से कर अंतरतर भूरपूर, शूर,
तुम एक चरण में भय, चिंता, संदेह, शोक कर चूर-चूर,
प्राणों की विप्लव-लहर विश्व में पहुंचा देते दूर-दूर।
तुम नवयुग के ॠषि, सूत्रधार।
मेरे किशोर, मेरे कुमार!
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits