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छाँह-द्वीप तुम ! / रमेश रंजक

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अनाथ मन
बैठ गई है पगडंडी पर
देह की थकन
तब-तब मेरे वर्तमान को
सुधा पिलाकर
सिद्ध कर गए हो—
कोरे इतिहास नहीं हो
</poem>
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