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बिल्लियॉ / अशोक कुमार शुक्ला

30 bytes added, 04:52, 26 दिसम्बर 2011
<strong>बिल्लियॉ </strong>
खूबसूरत ख़ूबसूरत पंखों वाली नन्हीं चिडियों को एक पिंजरें में कैद क़ैद कर लिया था हमने ,
क्योंकि उनके सजीले पंख लुभाते थे हमको,
इस पिंजरे में हर रोज दिये रोज़ दिए जाते थे
वह सभी संसाधन
जो हमारी नजर नज़र मेंजीवन के लिये जरूरी ज़रूरी हैं,लेकिन कल रात बिल्ली के झपटटे झपट्टे नेनोच दिये दिए हैं चिडियों के पंख
सहमी और गुमसुम हैं
आज सारी चिडिया चिडियाँ
और दुबककर बैठी हैं पिजरें के कोने में
पहले कई बार उडान उड़ान के लिये मचलते
चिड़ियों के पंख आज बिखरे हैं फर्श पर
और गुमसुम चिड़ियों को देखकर सोचता हूँ
मैं कि आखिर आख़िर इस पिंजरे के अन्दरकितना उडा उड़ा जा सकता हैआखिर आख़िर क्यों नहीं सहा जाता
अपने पिंजरे में रहकर भी
खुश ख़ुश रहने वाली
चिड़ियों का चहचहाना
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