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--[[सदस्य:Azad bhagat|Azad bhagat]] 13:01, 12 अक्टूबर 2011 (CDT)आजाद भगत
[[न जाने क्यूँ]]
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न जाने क्यूँ,
कभी आंसू बहाते है कभी वो खिल-खिलाते है ,
हमें हमसे चुराकर वो हम ही से रूठ जाते है ,
अधर से छेड़कर बाते वो नए किस्से बनाते है ,
करके इशारे निगाहों से हम ही को आज़माते है ,
न जाने क्यूँ.
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