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विधी के लिखे कुअंक मिटादे, सो लाखों में एक।
ये चक्कर कर्मो का लेखा, मति अनुकूल समझ से देखा,
गुरू कृृपा कृपा समझा कुछ तो भी, रहे आंख से देख।
कर्महीन जन शब्द न माने, अनहित और लगे वो जाने,
शुभ पल मिले तजे वहीं श्रद्धा, इसमें मिन न मेख।