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<Poem>
पास यूँ तो हर ख़ुशी है
बस तुम्हारी ही कमी है

आपकी आँखों के अन्दर
शायरी ही शायरी है

मुद्दतों चक्खा न मय को
आज पी तो खूब पी है

मुफ़लिसी हो या मुहब्बत
बेबसी तो बेबसी है

अब न खोने का कोई ग़म
अब न पाने की ख़ुशी है

जिस्म है एक कब्र जैसा
रूह जैसे आदमी है

ऐ 'मनु' क्यूँ सोचते हो
फैसलों की ये घड़ी है</poem>
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