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|रचनाकार=मनु भारद्वाज
|संग्रह=
}}
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<Poem>
पास यूँ तो हर ख़ुशी है
बस तुम्हारी ही कमी है
आपकी आँखों के अन्दर
शायरी ही शायरी है
मुद्दतों चक्खा न मय को
आज पी तो खूब पी है
मुफ़लिसी हो या मुहब्बत
बेबसी तो बेबसी है
अब न खोने का कोई ग़म
अब न पाने की ख़ुशी है
जिस्म है एक कब्र जैसा
रूह जैसे आदमी है
ऐ 'मनु' क्यूँ सोचते हो
फैसलों की ये घड़ी है</poem>
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}}
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<Poem>
पास यूँ तो हर ख़ुशी है
बस तुम्हारी ही कमी है
आपकी आँखों के अन्दर
शायरी ही शायरी है
मुद्दतों चक्खा न मय को
आज पी तो खूब पी है
मुफ़लिसी हो या मुहब्बत
बेबसी तो बेबसी है
अब न खोने का कोई ग़म
अब न पाने की ख़ुशी है
जिस्म है एक कब्र जैसा
रूह जैसे आदमी है
ऐ 'मनु' क्यूँ सोचते हो
फैसलों की ये घड़ी है</poem>
