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'''"मैं नहीं जानती की तुम जीवित हो या मर गए”...”'''
मैं नहीं जानती की तुम जीवित हो या मर गए-<br />इस धरा पर, क्या तुम्हें खोजा जा सकता है ?<br />अथवा सिर्फ शाम की धुंधली छटा में<br />शोक संतप्त होकर याद करके ........<br /><br />सब कुछ तुम्हारे लिए ; रोज की प्रार्थना,<br />गर्म रात्रि की अकुलाहट,<br />मेरी कविताओं की सफेद उड़ान,<br />और मेरी आँखों के नीले अंगारे ....<br /><br />मेरा कोई अंतरंग नहीं था,<br />नहीं सताया किसी ने मुझे इस तरह,<br />वो भी नहीं, जिसने मुझे धोखा दिया,<br />वो भी नहीं, जिसने करीब आ कर भुला दिया मुझे ...<br />१९१५.<br /><br />अनुवाद : '''गौतम कश्यप'''<br />रूसी भाषा से अनूदित