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अधूरापन / जया झा

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|रचनाकार= जया झा
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<poem>
है नहीं कुछ फिर क्यों भारी मन है,
 
दिन के अंत में कैसा अधूरापन है?
 
बोझिल आँखें, चूर बदन हैं, थके कदम से
 
कहाँ रास्ता मंज़िल का भला पाता बन है?
 
अधूरेपन की कविताएँ भी अधूरी ही रह जाती हैं,
 
पूरा कर पाए इन्हें, कहाँ कोई वो जन है?
</poem>