भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= शिवदीन राम जोशी | }} <poem> भजन बिना भटक...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= शिवदीन राम जोशी
|
}}
<poem>
भजन बिना भटकत जैसे प्रेत।
रंक राव चाहे बने भिखारी, हरी से राखे हेत।
बिना भजन भगवान प्रभु के, बीते जन्म अनेक।।
माया को मद सब ढल जावे, सूखे हरिया खेत।
भजन संजीवन बूंटी जग में, क्यो न इसे पी लेत।।
कंचन काया राख बने नर, सुवरण होवे रेत।
पारस भजन भजन कर बन्दे, भजन करो कर चेत।।
शिवदीन भजो भगवत को प्यारे, जो भक्ति वर देत।
बिना भजन भगवान प्रभू के, थोथा बने ढलेत।।
<poem>
{{KKRachna
|रचनाकार= शिवदीन राम जोशी
|
}}
<poem>
भजन बिना भटकत जैसे प्रेत।
रंक राव चाहे बने भिखारी, हरी से राखे हेत।
बिना भजन भगवान प्रभु के, बीते जन्म अनेक।।
माया को मद सब ढल जावे, सूखे हरिया खेत।
भजन संजीवन बूंटी जग में, क्यो न इसे पी लेत।।
कंचन काया राख बने नर, सुवरण होवे रेत।
पारस भजन भजन कर बन्दे, भजन करो कर चेत।।
शिवदीन भजो भगवत को प्यारे, जो भक्ति वर देत।
बिना भजन भगवान प्रभू के, थोथा बने ढलेत।।
<poem>