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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= राणा प्रताप सिंह }} {{KKCatNavgeet}} <poem> सूरज स...' के साथ नया पन्ना बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार= राणा प्रताप सिंह
}}
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<poem>
सूरज से करके बरजोरी
घन-घन मेघ बजे
छोड़ किनारे द्वारे-द्वारे
नदिया आज फिरे
दिन अलसाए मन पनियाए
हैं बिखरे-बिखरे
हरियाली का घुँघटा काढ़े
वसुधा खूब लजे
ऊसर मन में प्रेम के अंकुर
अभी-अभी फूटे
आसमान में उड़े है पंछी
पिंजरे है टूटे
कूची में उस चित्रकार के
कितने रंग सजे
टूटी मेड़ भरा है पानी
कोई बंद लगे
घुटनों भर की धोती में
जैसे पैबंद लगे
देख कृषक काया बरबस ही
श्रद्धा भाव उपजे
</poem>
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|रचनाकार= राणा प्रताप सिंह
}}
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सूरज से करके बरजोरी
घन-घन मेघ बजे
छोड़ किनारे द्वारे-द्वारे
नदिया आज फिरे
दिन अलसाए मन पनियाए
हैं बिखरे-बिखरे
हरियाली का घुँघटा काढ़े
वसुधा खूब लजे
ऊसर मन में प्रेम के अंकुर
अभी-अभी फूटे
आसमान में उड़े है पंछी
पिंजरे है टूटे
कूची में उस चित्रकार के
कितने रंग सजे
टूटी मेड़ भरा है पानी
कोई बंद लगे
घुटनों भर की धोती में
जैसे पैबंद लगे
देख कृषक काया बरबस ही
श्रद्धा भाव उपजे
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