भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= राणा प्रताप सिंह }} {{KKCatNavgeet}} <poem>रीत रह...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= राणा प्रताप सिंह
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>रीत रही हैं प्रतिपल अपनी गंगा माई
उनको भी ज्ञान हुआ, मानवता बौराई
शासित और शासक में
आज बड़ी अनबन है
चीर हरण हो रहा
कान्हा तो मधुबन है
नई कोंपलें नम हैं
किन्तु जड़ें बेदम हैं
स्वार्थ के तराजू का
हुआ संतुलन कम है
आज के विचारों में बची नहीं गहराई
मेरुदंड में भीषण
मची हुई कंपन है
शिरा और धमनी में
बेअदबी उलझन है
शगल ये पुराना है
इसे बदल जाना है
नव चेतन के पट की
सांकल खुलवाना है
बाते ठुकरानी है अब तक जो मनवाई
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार= राणा प्रताप सिंह
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>रीत रही हैं प्रतिपल अपनी गंगा माई
उनको भी ज्ञान हुआ, मानवता बौराई
शासित और शासक में
आज बड़ी अनबन है
चीर हरण हो रहा
कान्हा तो मधुबन है
नई कोंपलें नम हैं
किन्तु जड़ें बेदम हैं
स्वार्थ के तराजू का
हुआ संतुलन कम है
आज के विचारों में बची नहीं गहराई
मेरुदंड में भीषण
मची हुई कंपन है
शिरा और धमनी में
बेअदबी उलझन है
शगल ये पुराना है
इसे बदल जाना है
नव चेतन के पट की
सांकल खुलवाना है
बाते ठुकरानी है अब तक जो मनवाई
</poem>