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मगर कैसे बताऊँ मैं ये किसकी मेहरबानी है
खुला ये अपने आइने की हमने क्या हालत बना डाली राज़ मुझ पर ज़िंदगी का देर से शायदकई चेहरे हटाने हैंतेरी दुनिया भी फानी है, कईं यादें मिटानी हैंमेरी दुनिया भी फ़ानी है वफ़ा नाज़ुक सी कश्ती है ये अब डूबी कि तब डूबी मुहब्बत में यकीं के साथ थोड़ी बदगुमानी है
तुम्हें हम फासलों से देखते थे औ'र मचलते थे
मिटा कर नक्श कदमों के, चलो अनजान बन जाएँ
मिलें शायद कभी हम-तुम, कि लंबी ज़िंदगानी है
 
ये मत पूछो कि कितने रंग बदले हैं मैंने पल-पल
ये मेरी ज़िंदगी क्या, एक मुजरिम की कहानी है
 
गुज़ारे माँ की गोदी में, सुनहरे दिन थे बचपन के
तेरी कुर्बत में जो बीता वही लम्हा जवानी है
वफ़ा के नाम पर 'श्रद्धा' न हो कुर्बान अब कोई
कहानी हीर-रांझा की पुरानी थी, पुरानी है
</poem>
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