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{{KKRachna
|रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
बहारे-रफ़्ता को ढूँढें कहाँ-कहाँ यारो
कि अब निगाहों में यादों की है ख़िज़ाँ यारो
झुका-झुका-सा है माहताब आरज़ूओं का
धुआँ-धुआँ हैं मुरादों की कहकशाँ यारो
ये ज़िन्दगी तो बहारो-ख़िज़ाँ का संगम है
ख़ुशी न दायमी ग़म भी न जाविदाँ यारो
</poem>
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|रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी
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बहारे-रफ़्ता को ढूँढें कहाँ-कहाँ यारो
कि अब निगाहों में यादों की है ख़िज़ाँ यारो
झुका-झुका-सा है माहताब आरज़ूओं का
धुआँ-धुआँ हैं मुरादों की कहकशाँ यारो
ये ज़िन्दगी तो बहारो-ख़िज़ाँ का संगम है
ख़ुशी न दायमी ग़म भी न जाविदाँ यारो
</poem>