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सूरदास प्रभु माता चित तैं दुख डार्‌यौ बिसराइ ॥<br><br>
भावार्थ :-- श्रीहरि माता यशोदाकी गोदमें यशोदा की गोद में किलकारी ले रहे हैं । माता बार-बारमुख देखकर अपने लालसे लाल से कहती है -`लाल ! तू मुझ कंगालिनीका कंगालिनी का धन है।' वे श्यामसुन्दरका श्यामसुन्दर का अत्यन्त कोमल शरीर देखकर बार-बार पश्चाताप करती है -`लाल! मैं तुझपर तुझ पर बलिहारी हूँ, पता नहीं तू तृणावर्तके आघातसे तृणावर्त के आघात से कैसे बच गया । किस (पूर्वजन्मकेपूर्वजन्म के) पुण्यसे कौन (देवता) सहायता कर देता है, यह मैं जानती नहीं; जैसा (क्रूर) कर्म पूतनाने पूतना ने किया था, वैसा ही इस (तृणावर्त) ने आकर किया।' माताको माता को दुःखित समझकर श्यामछोटी दँतुलियाँ दिखाकर हँस पड़े । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि प्रभु ने माताका माता का चित्त अपनेमें लगाकर उनका दुःख विस्मृत करा दिया ।