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|रचनाकार=रविंदर कुमार सोनी
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मिरी हस्ती ही क्या है, मैं नहीं हूँ
मुझे इतना पता है, मैं नहीं हूँ
नहीं हूँ मैं तिरी दुनिया में फिर क्यूँ
वही मश्क़ ए जफ़ा है, मैं नहीं हूँ
ग़म ए हस्ती का हो कर रह गया हूँ
बस अब मेरा ख़ुदा है, मैं नहीं हूँ
लगाता है जो किश्ती को किनारे
ख़ुदा या ना ख़ुदा है, मैं नहीं हूँ
इक आह ए गर्म से गर्दूं को फूँका
ये मेरा होसला है, मैं नहीं हूँ
</poem>