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सूरदास बलि जाइ जसोदा गोपिनि-प्रान, पूतना-बैरी ॥<br><br>
(कोई गोपिका कहती है -यशोदाजीयशोदा जी!) `तनिक गोपालको गोपाल को तुम मुझे दे दो, मैं इसके कमलमुखको कमलमुख को एक बार भली प्रकार देख लूँ, इसके बाद तुम गोदमें गोद में लेना ।' (गोदमें गोद में लेकर कहती है) `इसके कर तथा चरण कमलके कमल के समान अत्यन्त कोमल हैं, अधर, दँतुलियाँ और नासिका बहुत शोभा दे रही है, मस्तकपर मस्तक पर यह लटकन (केशोंमें केशों में गूंथे मोती) तथा गलेमें कौस्तुभमणिऐसी गले में कौस्तुभमणि ऐसी छटा दे रहे हैं कि इनपर इन पर करोड़ों कामदेव भी न्योछावर हो गये। सखी ! मैं रात-दिन सोचती रहती हूँ कि यह सुख (जो कन्हाई के आने पर मिला है) मैंने और कभी नहीं पाया । यह तो वेदोंकी वेदों की सम्पत्ति और सनकादि ऋषियोंका सर्वस्व है, जिसे तुमने बड़े सौभाग्य से पा लिया है । इसके रूप ही जगत के नेत्र हैं (जगत् के नेत्रों की सफलता इसके रूपका दर्शन करना ही है) करोड़ों सूर्य-चन्द्र (इस रूपको देखकर) लज्जित हो जाते हैं ।' सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं- माता यशोदा अपने लालपर लाल पर बलि-बलि जाती हैं । (उनका लाल) गोपियोंका गोपियों का प्राणधन औष पूतनाका पूतना का शत्रु है ।