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Kavita Kosh से
बे ज़ुबानों को बे ज़ुबां कहिये
बे ज़ुबानी की दास्ताँ कहिये
रक़स करती हो ज़िन्दगी जिस में
कोई ऐसी भी दास्ताँ कहिये
बज़्म ए शेअर ओ सुख़न में है अब और
आप-सा कौन ख़ुशबयाँ कहिये
ये तो झगड़ा है दो दिलों का, आप
किस को लाएँगे दरमियाँ कहिये
हम को तो एक ही प्याले में
मिल गए जैसे दो जहाँ कहिये
हो गए उन से बे तआलुक़ हम
आप इसे दिल का इम्तिहाँ कहिये
दिल को कहिये जो रहनुमा ए अक़ल
अक़ल को दिल का पासबाँ कहिये
कारवान ए हयात क्यूँ है रवि
सू ए मंज़िल रवाँ दवाँ कहिये
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