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हक़ नमक का / नन्दल हितैषी

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|संग्रह=बेहतर आदमी के लिए / नन्दल हितैषी
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<poem>
जब शोर की अधिकता में
प्रभावी होता है संकेत.
तब चमक उठती है
चौराहे की लाल बत्ती
......और संवादहीनता
बनती है नियति,
भागता हुआ अभिवादन
जोड़ देता है
भिनसारे को संझा से.
नमक का सही हक़
अदा करता हुआ वह कामगार
’उरिन’ हो गया,
ठेले पर नमक के बोरे
..... और पसीने से तरबतर
एक पौरुष.
</poem>
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