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Kavita Kosh से
क्या मालूम था
श्रम के हाथेंा हाथों
रूखी सूखी रोटी होगी,
नंगे होंगे पांव, बदन पर
केवल फटी लंगोटी होगी
छत के नाम शीश नभ होगा
किस्मत ऐसी खेाटी खोटी होगी
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