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एक स्याह बादल सिर ऊपर
झूम रहा आकाश उठाये
मर्जी जहां वही वहीँ पर बरसे
प्यासा भले जान से जाये
इस पर भी जिद है लोगों की
अधनंगी शाखों पर लटके
यहां वहां बर्रों के छत्ते
फिर भी चाह रह रहा पतझड़ मैं चारण बन उसके गुण गाऊ गाऊं
वाह जमाने बलि बलि जाऊं
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