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लाज अपनी लुटाकर गयी द्रोपदी,
जानकी के सुभग देश में किस तरह
घट रही रोज ही हैं अशुभ यह नयी त्रासदी,
स्वर सुनायी नहीं दे रहे रोष के,
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