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Kavita Kosh से
मरने वालों को भी मिलते नहीं मरने वाले
मौत ले जी जा के खुदा जाने कहाँ छोड़ती है
ज़ब्त-ए-ग़म खेल नहीं है अभी कैसे समझाऊँ
देखना मेरी चिता कितना धुआँ छोड़ती है