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प्रयास / अवनीश सिंह चौहान

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मेरा प्रयास बन नदियामेरी कोशिश जग सूखी नदिया में सदा -बन नीर बहूँ मैं
चल सकूँ उस राह पाऊँ उन राहों पर भीजो सूखकर पथरा गई होजिनमें कंटक छहरे तोड़ दूँ सकूँ चट्टान को भीगड़ी हुई जो रास्ते में आ गई होगहरे
धीर धरे मन जोश भरेहर राही अपनी मंजिल पा जाए ऐसी राह गहूँ बनू मैं
थके हुए कोहर प्यासे कोचलकर अपना मन दूँ, जीवन-जल दूँटूटे-सूखे दबे और कुचले पौधों कोहरा-भरा नव-जीवन-दल दूँ
हर विपदा में, -चिन्ता मेंसबके साथ रहूँ दहूँ मैं
आ खूब नहाएँ चिड़ियाजहाँ-जहाँ पर रेत अड़ी है मेरी धार बहाए बच्चे, माँझी नाव चलाएँचले तो ले जाएँ घर-क्यारी मेंमुझ पर ऐसी अपनी फसलों को नहलाएँदोनों तीर मिलाए
आऊँ काम सभी के बसऊसर-बंजर तक प्रभु से यही कहूँ जा-जाकर सबके चरण गहूँ मैं
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