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22:20, 11 मार्च 2012 {{KKRachna
|रचनाकार=मनु भारद्वाज
|संग्रह=
}}
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<Poem>
बेख़ुदी में कबीर हो जाऊं
मैं मुहब्बत का पीर हो जाऊं
सारी दुनिया को छोड़ दूँ पल में
तेरे दिल में पज़ीर हो जाऊं
मालो-ज़र आपको मुबारक़ हो
मैं ग़ज़ल का अमीर हो जाऊं
चाहता हूँ कोई शहादत दूँ
तेरी अबरू का तीर हो जाऊं
बनके तुलसी मैं तुझपे दोहे कहूँ
जब ग़ज़ल हो तो मीर ही जाऊं
मेरे मौला मुझे मिटा देना
जिस घडी बे-ज़मीर हो जाऊं
मुझको खैरात से बचा मौला
मैं भले ही फ़क़ीर हो जाऊं
ऐ 'मनु' वो अगर इजाज़त दें
मांग क़ी मैं लकीर हो जाऊं</poem>