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<Poem>
पहले दो घूँठ ज़रा पी जाये
फिर नयी इक ग़ज़ल कही जाए

तेरी हर बात पे अमल सबका
मेरी हर बात अनसुनी जाये

मौत का लुत्फ़ हम भी ले लेंगे
बस तेरी याद कुछ चली जाये

चारागर पे अब ऐतबार नहीं
दिल का ग़म है दुआ ही दी जाये

आपकी सुनते हुए उम्र कटी
कुछ तो मेरी भी अब सुनी जाये

कब्र में लाके हमको रख तो दिया
हमसे अंगडाई भी न ली जाये

ऐ 'मनु' अब कोई भी फ़र्क नहीं
कोई ग़म आये, या ख़ुशी जाये</poem>
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