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मैं तेरे दिल में छुपा तेरा प्यार हूँ की नहीं
पलट के देख ज़रा बेक़रार हूँ की नहीं

खुदा के वास्ते कुछ तो ख़याल कर मेरा
तेरे बगैर सनम सोगवार हूँ की नहीं

मुझे है याद वो इठलाके तेरा ये कहना
'मैं ख़ुश्बुओं से महकती बहार हूँ की नहीं'

मुहब्बतों से नहाई हुई ग़ज़ल तू है
मैं उस ग़ज़ल में निहाँ आबशार हूँ की नहीं

निकल के क़ैद से ज़ुल्फों की ग़ज़ल ये बोली
'किसी ग़रीब के दिल की पुकार हूँ की नहीं'

कभी-कभी तो ये लगता है ऐ 'मनु' मुझको
कभी न ख़त्म हो वो इंतज़ार हूँ की नहीं</poem>
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