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हर आदमी का चेहरा ग़मों की मशीन है
यूँ लग रहा है जैसे कि पिच्चर का सीन है

औरों की ऐबजोइयाँ करता है रात दिन
खुद के लिए तो आदमी पर्दानशीन है

कितने फ़क़ीर ठण्ड से कल रात मर गए
पर सेठ जी की रात नशे से हसीन है

कोई किसी के वास्ते अब सोचता नहीं
हर शख्स अपने आप में ही कितना लीन है

मैं हूँ किसान आज भी हिन्दोस्ताँ की शान
मेरा वतन खुदा है, मेरी माँ ज़मीन है

हर कोई तेरे वास्ते कहता है अब 'मनु'
शायर तो बहुत अच्छा है पर नुक्ताचीन है</poem>
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