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हालात मेरे ख़ुद भी संवरने नहीं देता
आँखों से मेरी अश्क भी ढलने नहीं देता

पत्थर भी मारता है हरेक रोज़ वो मुझपे
शीशे की तरह फिर भी बिखरने नहीं देता

दिल पर तमाम बोझ लिए फिर रहे हैं हम
यादों को ज़हन से वो गुज़रने नहीं देता

जीना भी मैं चाहूँ तो ये उसको नहीं पसंद
मरना भी मैं चाहूँ तो वो मरने नहीं देता

अल्लाह तेरा शुक्र मेरे पैर कट गए
रफ़्तार से ज़माना भी चलने नहीं देता

इस वक़्त का मिज़ाज कोई जान न पाया
आ जाए जो अपनी पे संभलने नहीं देता

माना ज़मीर बेच दिया फिर भी ऐ 'मनु'
दिल क्यूँ मुझे बयान बदलने नहीं देता</poem>
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