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Kavita Kosh से
हाँ अहद-ए-मोहब्बत इन्हीं चारों से कहेंगे
आगोश में आ जाए समंदर जो वफ़ा का हम अलविदा दुनिया के, हर लम्हे की रूदाद किनारों से कहेंगे
चेहरे से चुराओगे जो सुर्खी-ए-तब्ब्सुम क़िस्सा उड़ी रंगत का, हम हाल तुम्हारा भी बहारों से कहेंगे
आँखों में जो रोशन हैं, वफ़ा के कई जुगनू
ज़ज़्बात ये “श्रद्धा” के, हज़ारों से कहेंगे
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