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Kavita Kosh से
उजियारा भटक रहा
अपने ही देश
प्रतिभाएँ मोल बिकीं
कौड़ी की तीन,
गंगा तक श्याम हुई
बदला परिवेश
झूठों को मानपत्र
सच्चों की जाँच
वादे परिवर्तन के
थोथे निर्देश
यहाँ वहाँ घूम रहे
बादल मुँहजोर