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पथ चलने की
कसमें खायी हैं
 
पर गांडीव सुरक्षा घर की
अब भी करता है
 
हमने युग युग से
जग को राहें
योग कलायें भी
सिखलायी हैं
वक्त पड़े तो शंख कृष्ण का
अब भी बजता है
आंगन में
तुलसी का बिरवा
घर -घर हैं सीता
लिये गदा हनुमान द्वार
हुंकारें भरता है।
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