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Kavita Kosh से
हाथ में कंघी
काढ़े अपने बाल
बोलो , साधो ऐसे कैसे बदला अपना लाल!
कब जगना
कब उसका सोना
पकड़ बैठता
संकेतों में
पूछा करता
जाने किसका हाल!
कभी भाँग-सी
कुछ पूछो तो
कुछ है कहता
सीधी-सादीसीधी
पगडंडी पर
डगमग उसकी चाल!
तकली में अब
लगी रुई है
समय सुई है
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