भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
}}
{{KKAnthologyHoli}}
<Poem>लाल-गुलाबी बजीं तालियाँ
बरसाने की होली में
बजे नगाड़े ढम-ढम-ढम-ढमचूड़ी खन-खन, पायल छम-छमसिर-टोपी पर भँजीं लाठियाँठुमके ग्वाले तक-धिन-तक-धिन
ब्रजवासिन की सुनें गालियाँ
ब्रज की मीठी बोली में
मिलें-मिलायें गोरे-कालेमौज उड़ायें देखन वालेतस्वीरों में जड़ते जायेंमन लहराये-फगुनाये दिन
प्रेम बहा सब तोड़ जालियाँ
दिलवालों की टोली में
चटक हुआ रंग फुलवारी काफसलों की हरियल साड़ी कापक जाने पर भइया, दानेघर आयेंगे खेतों से बिन
गदरायीं हैं अभी बालियाँ
बैठीं अपनी डोली में
</Poem>