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Kavita Kosh से
काले सर्प-सा धुआँ
फन फैलाए
(आस)
छोड़ो ना तुम
यूँ आस का दामन
होगा सवेरा
(सफ़र)
जब भी मिली
हमें तो सफ़र में
धूप ही मिली
(आँधी )
तेज थी आँधी
टूटा गुलमोहर
सपनों –जैसा
(पतझर)
शर्माई लता
ढूँढती फिरे वस्त्र
पतझर में
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