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Kavita Kosh से
धारे युवा वैष्णवी
वन में खड़ी
(बर्फ़ के फाहे)
बर्फ़ के फाहे
आहिस्ता गिर रहे
धुनी रुई से
(कैद चाँद)
मेघ मुट्ठी में
कैद चाँद फिसला
निकल भागा
(पाखी के स्वर )
बज उठते
सन्नाटे के घुँघरू
पाखी के स्वर
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