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लोटत सूर स्याम पुहुमी पर, चारि पदारथ जाकैं हाथ ॥<br><br>
भावार्थ :-- `मेरे लाल! बालगोपाल! तुम खेलो । मैं तुम्हारे कमलमुखपर कमलमुख पर बार-बार बलिहारी जाऊँ, तोतली वाणीसे अमृतके वाणी से अमृत के समान मधुर बातें कहो' (किंतु) श्रीनन्दनन्दन ने दोनों हाथोंसे हाथों से (दहीमथनेकादही मथने का) मटका पकड़ रखा है, (मटकेसे मटके से दही मथनेके मथने के कारण) दहीकीबूँदें दही की बूँदें छिटक-छिटककर छिटक कर पर्याप्त मात्रामें मात्रा में उनके शरीरपर शरीर पर गिर रही हैं; उनके सुन्दर श्यामल अंगोंपर अंगों पर वे ऐसी शोभा देती हैं मानो नीलमके नीलम के ऊपर गजमुक्ता शोभित हों । जगतके जगत के जीवनस्वरूप प्रभु प्रातः उठकर मातासे माता से निहोरा करते हैं कि `मुझे माखन-रोटी दे।'सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि (अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष) चारों पदार्थ जिनके हाथमें हाथ में हैं, वे ही श्यामसुन्दर (माखन-रोटीके रोटी के लिये मचलते) पृथ्वीपर पृथ्वी पर लोट रहे हैं ।