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सूरदास कौ ठाकुर ठाढ़ौ, हाथ लकुटिया छोटी ॥<br><br>
गोपालराय दही और रोटी माँग रहे हैं । (वे कहते हैं-) `मैया। अच्छी पकी हुई और खूब कोमल रोटी मुझे मक्खन के साथ दे ।' (माता कहती हैं -)`मेरे मोहन ! तुम आँगन में लोटकर मचलते क्यों हो, यह बुरा स्वभाव छोड़ दो ।जो । जो इच्छा हो वह तुरंत लो।' निहोरा करके (मातानेमाता ने) कलेऊ दिया और फिर मुख तथा अलकों में तेल लगाया । सूरदास जी कहते हैं कि अब (कलेऊ करके) हाथ में छोटी-सी छड़ी लेकर ये मेरे स्वामी खड़े हैं ।