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'''[[इमरोज़]] की कलम से [[इमरोज़]]'''
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खेतों में खेलने के बाद रंगों से खेलने के लिए मैं लाहौर के आर्ट स्कूल में पहुँच गया कुछ बनने कुछ ना बनने से बेफ़िकर तीन साल आर्ट स्कूल में मैं रंगों से खूब खेला
जो कुछ हो चुका है उसे दुहराने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं कुछ नए की तलाश में रहता हूँ-इंतज़ार भी करता
एक उम्र शायरा अमृता के साथ मुहब्बत और आजादी का सत्संगसारी ज़िन्दगी ने देखा और जब अमृता पेड़ से बीज बन गई तो एक नया मौसम आ गया अनलिखी नज्मों को लिखने का मौसम--जो मैं अब लिख रहा हूँ ....
और आखिर में '''[[रश्मि प्रभा]] ''' से यूँ कहते हुए-
कई सवाल होंगे जो अभी पूछे नहीं पर वो ज़िन्दगी में हैं कई शक्लों में
मेरी नज्में अक्सर सवाल भी उठाती हैं और जवाब भी ढूंढती हैं
'''[[इमरोज़]]'''
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