भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सूर स्याम-मुख निरखि मगन भइ, दुहुनि सँकोच सह्यौ ॥<br><br>
भावार्थ :-- श्रीयशोदाजीने श्रीयशोदा जी ने विनम्र होकर -`पाहुनी! तनिक दधि-मन्थन मन्थन कर दो! मैं घर के काम-काज तथा रसोई बनानेमें बनाने में लगी हूँ और यह मोहन मुझसे मचल रहा है, इसने आक मेरा अञ्चल पकड़ लिया है ।' (किंतु श्यामकी शोभापर श्याम की शोभा पर मुग्ध वह पाहुनी) आकुलतापूर्वक खाली मटके में हीमन्थन ही मन्थन कर रही है, दही तो (मटका लुढ़कनेसेलुढ़कने से) पृथ्वीपर पृथ्वी पर बहा जाता है ।श्रीनन्दरानीने ।श्रीनन्दरानी ने मक्खन पृथ्वी पर जाता समझकर (देखकर) सखी से उसे सँभालनेके सँभालने के लिए कहा । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दरका श्यामसुन्दर का मुख देखकर वह (पाहुनी)मग्न हो गयी, उसने चुपचाप दोनों (यशोदाजीका यशोदाजी का और दही गिरनेकागिरने का) संकोच सहन कर लिया ।