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Kavita Kosh से
ज़िन्दगी ने सीखलीं भरना कुलांचें,
मान नहीं करता कि अब इतिहास बाँचें.
घुंघरुओं में बांधकर चरों दिशाएँ ,
हम बिना सुर-ताल के निर्बाध नाचें.
जब अकेले ही विचारने विचरने हृदय हो,
झुण्ड के अनुबंध को कैसे जियें.