भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चारा न था / प्रभात

2 bytes added, 20:36, 7 अप्रैल 2012
पूरी बात जब ख़त्म हो रही थी मुझे बताया
कि वह कपड़े धो रही थी
और कहा— ‘कल आप आओगे न’न ?’
यह मुझसे कहते उसने न जाने किससे कहा
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits