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Kavita Kosh से
स्वर तुम्हारे गूँजते हैं, रात इस ठहरी हवा में,
और हर दिन काट कात लेता गीत मैं कोई स्वरों से इन तुम्हारे.
स्मित तुम्हारा तैर जाता,
