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बहुत मुद्दतों बाद कृष्ण पाया,
पाया प्रेमी का ठीक पता।
उठ दौड़े, चौके, प्रभु बोले,
है कहां सुदामा बता बता।
सुनते ही नाम सुदामा का,
अति उर में प्रेम उमंग आया।
प्रेम प्रभु तो खुद ही थे,
हद प्रेम जिन्होंने बरसाया।
हाल सुने करुणानिधि ने करुणेश करी करुणा अति भारी,
मीत सखा अरु प्रीत सखा सच आवत यों बहु याद तिहारी।
मीत बड़े सब जानत आप, बड़े हमसे सुधि लीन हमारी,
यों उठ दौरि न ढ़ील करी कित रंक सुदामा व कृष्ण मुरारी।
उठ दौडे पैर पयादे ही,
झट पट से प्रभु बाहर आये।
स्नान कराने को उनको
निज हाथों पानी भरती थी।
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