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Kavita Kosh से
|रचनाकार=मंगलेश डबराल
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दे देते हैं.
कुछ कवि रात में कालातीत होते हैं. लोग जब सिकुड़े-सिमटे गठरी<br>बने नींद में दुबके रहते हैं कवियों का कद बढ़ता रहता है. कभी वे<br>इतने बढ़े हो उठते हैं कि वे भी अपने को देख नहीं पाते. कुछ कवि<br>अपने बचपन में ही बुजुर्ग हो गये. युवा होते-होते उन्हें कालजयी कहा<br>जाने लगा. कुछ ने अपने नाम मृतकों की सूची में लिखवा लिये. कुछ<br>
दूसरी भाषाओं में पा गये ईनाम.
कुछ कवि अपने बचपन के फोटो छ्पवाते हैं. बाकी अपने बच्चों के<br>फोटो छ्पवाकर काम चलाते हैं कि हम तो रहे विफल. अब बच्चों<br>
से ही है उम्मीद.
१९८८
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