भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात / मंगलेश डबराल

6 bytes added, 12:24, 12 अप्रैल 2012
|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
}}
{{KKCatKavita}} <poem>
बहुत देर हो गई थी
 
घर जाने का कोई रास्ता नहीं बचा
 
तब एक दोस्त आया
 
मेरे साथ मुझे छोड़ने
 
अथाह रात थी
 
जिसकी कई परतें हमने पार कीं
 
हम एक बाढ़ में डूबने
 
एक आँधी में उड़ने से बचे
 
हमने एक बहुत पुरानी चीख़ सुनी
 
बन्दूकें देखीं जो हमेशा
 
तैयार रहती हैं
 
किसी ने हमें जगह जगह रोका
 
चेतावनी देते हुए
 
हमने देखे आधे पागल और भिखारी
 
तारों की ओर टकटकी बाँधे हुए
 
मैंने कहा दोस्त मुझे थामो
 
बचाओ गिरने से
 
तेज़ी से ले चलो
 
लोहे और ख़ून की नदी के पार
 
सुबह मैं उठा
 
मैंने सुनी दोस्त की आवाज़
 
और ली एक गहरी साँस ।
 
(1989)
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits