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दरसन देहु मुदित नर-नारी ।सूरज-प्रभु दिन देव मुरारी ॥<br><br>
नन्दनन्दन ! सबेरा हो गया, अब जागो । हे विश्वके विश्व के वन्दनीय ! तुम्हारे सब सखा द्वार पर खड़े हैं । गायें प्रेमसे प्रेम से बछड़ों को दूध पिला रही हैं, पक्षी पेड़ोंको पेड़ों को छोड़कर दसों दिशाओंमें दिशाओं में उड़ने लगे हैं । आकाशमें आकाश में अरुणोदय देखकर मुर्गे बोल रहे हैं । कामदेवने हाथमें कामदेव ने हाथ में लिया धनुष डोरी उतारकर रख दिया है । रात्री व्यतीत हो गयी, भली प्रकार सजा सूर्यका सूर्य का रथ प्रकट हो गया । चन्द्रमा मलिन पड़ गया और चक्रवाकी अपने जोड़ेसे जोड़े से मिलकर प्रसन्न हो गयी । कुमुदिनियाँ कुम्हिला गयीं । कमल फूल उठे, उनपर उन पर मँडराते भौंरे गुंजार कर रहे हैं । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि मेरे सदा के आराध्यदेव श्रीमुरारि!अब दर्शन दो, जिससे (व्रजकेव्रज के) स्त्री -पुरुष आनन्दित हों ।