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(उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर विशेष: यह कविता राज्य आन्दोलन के दौरान खटीमा-मसूरी व मुजफ्फरनगर कांडों के बाद लिखी गयी थी)
== उम्मीद ==
एक दिन
इकतरफा सांस (मृत्यु के करीब की) शुरू हो सकती है
नाड़ियां खो सकती हैं
दिन में ही-
काली रात !
कभी समाप्त न होने वाली
काली रात
हो सकती है।
दिऐ बुझ सकते हैं
चांदनी भी ओझल हो सकती है
भीतर का भीतर ही
निचले तल (में बंधने में बंधने वाले पशु) निचले तल में ही
भण्डार में रखा (अनाज या धन) भण्डार में ही
खेतों का (अनाज) खेतों में ही
उजड़ सकता है।
सारी दुनिया रुक सकती है
जिन्दगी समाप्त हो सकती है
जान जा भी सकती है।
पर एक चीज
जो कभी भी
नहीं समाप्त होनी चाहिऐ
जो रहनी चाहिऐ
हमेशा जीवित-जीवन्त
वह है-उम्मीद
क्योंकि-
जितना सच है
रात होना
उतना ही सच है
सुबह होना भी।
मूल कुमाउनी कविता :
एक दिन
इका्र सांस लै ला्गि सकूं
ना्ड़ि लै हरै सकें,
दिन छनै-
का्इ रात !
कब्बै न सकीणीं
का्इ रात लै
है सकें।
छ्यूल निमणि सकनीं
जून जै सकें,
भितेरौ्क भितेरै •
गोठा्ैक गोठै •
भकारौ्क भकारूनै
सा्रौक सा्रै
उजड़ि सकूं।
सा्रि दुनीं रुकि सकें
ज्यूनि निमड़ि सकें
ज्यान लै जै सकें।
पर एक चीज
जो कदिनै लै
न निमड़णि चैंनि
जो रूंण चैं
हमेशा जिंदि
उ छू- उमींद
किलैकी-
जतू सांचि छु
रात हुंण
उतुकै सांचि छु
रात ब्यांण लै।