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कि बचि रौ
हमूं में हमर चिनाड़ ?
== लौ ==
कौन कहता है-
मौत आऐगी
तो `मैं मर जाउंगा´
मैं तो एक परिन्दा हूं
दूसरी शाखा में उड़ जाउंगा।
कौन कहता है-तेज नदी आऐगी तो
`मैं बह जाउंगा´
मैं तो एक किनारा हूं
बस, दूसरे किनारे को देखता रहूंगा।
कौन कहता है-दौलत आऐगी तो
`मैं बदल जाउंगा´
मैं खुद ही अनमोल हूं
बस, स्वयं को बचा कर रखुंगा।
मैं काल हूं, विकराल हूं,
डरो मुझसे।
छोटा बच्चा हूं,
स्नेह करो मुंझसे।
मैं ब्रह्मा, बिष्णु, महेश
मैं समय सा बलवान हूं।
व्यक्ति को मनुष्य बनाने वाला
दुनियां के कण-कण में बसा
कहां नहीं हूं-कौन नहीं हूं,
यहां भी हूं, तहां भी।
जहां जरूरत पड़ेगी
वहां मिलुंगा,
स्थापित कर दो कहीं-नहीं हिलुंगा,
बौना हूं में, विराट भी।
अरे ! मुझे ढूंढने
कहां चल दिऐ ?
मैं तुम्हारे भीतर-
मैं अपने भीतर
मैं `लौ´।
मूल कुमाउनी कविता :
को कूं-
मौत आली
`मिं मरि जूंल´
मिं त एक चड़ छुं
दुसा्र फांग में उड़ि जूंल।
को कूं-गाड़ आली
`मिं बगि जूंल´
मिं त एक ढीक छुं
बस, दुसार ढीक कैं चै रूंल।
को कूं-दौलत आली
`मिं बदई जूंल´
मिं आफ्फी अनमोल छुं
बस, आपूं कैं बचै बेर धरूंल।
मिं काल छुं,बिकराल छुं,
डरो मिं बै।
नानूं भौ छुं,
लाड़ करो मि हुं।
मिं बर्मा-बिश्नु-महेश
मिं बखत जस बलवान छुं।
आदिम कैं मैंस बणूणीं
दुणिया्क कण-कण में बसी
कॉ न्हैत्यूं-को न्हैत्यूं,
यॉं लै छुं-तां लै छुं।
जां जरूरत पड़ैलि-
वां मिलुंल,
थापि दियो कत्ती-न हलकुंल,
बौयां छुं मिं, सोल हात लंब लै।
अरे ! मिं कैं ढुंढण हुं-
कां हिटि दि गोछा ?
मिं तुमा्र भितर-
मिं आपंण भितर
मिं `लौ´।