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डॉ0 [[भावना कुँअररामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु]] की संवेदना निराली ' और [[डॉ भावना कुँअर'' ने इस संकलन का सम्पादन किया है । अपने गाँव के नीम के पेड़ दोनों ने ताँकाकारों का मनोबल बढ़ाकर उनको और अच्छा लिखने की निबौंलियों को अपनी यादों के आईने प्रेरणा दी है । आपका मानना है कि इस जग में देखती बबूल ज्यादा हैं और चन्दन कम है , इसीलिए ओ मेरे मन तू गम न करना -'''दु:ख न करनीम का पेड़मेरे पागल मनयही जीवनहैं बबूल बहुत शरमाएनटखटकम यहाँ चन्दन ।'''बस एक आसान -सीनिबौंलियाँ उसकोखूब गुदगुगाएँ तो उन्हें कहीं आँगन में खेलती धूप में माँ अनाज सुखाती दिखाई देती सा काम तुझे करना है ;जिसमें कबूतरी , नफरत को विदा कर , ताकि ईद का समावेश उसे मार्मिक बना देता हैचाँद तेरे मन-आकाश को प्रतिदिन रौशन करता रहे -'''ईद का चाँदआज फिर माँहर रोज़ बढ़े ज्यों,अनाज़ सुखाएगीसुख भी बढ़ेंवो कबूतरीरोज़ गगन चढ़ेंपल भर में सबदिल रौशन करें ।'''चट कर जाएगी भावना जी साथ ही जीवन के [[हाइकु|ताँका]] का हर एक शब्द पाठक कटु यथार्थ की ओर इशारा करते हुए शातिर लोगों के मर्म को छू लेता है । जीवन भर हर एक व्यक्ति किसी न किसी अभाव शब्दों की मिठास के लेप में छुपे ज़हरीले वार से व्यथित रहता है ; सम्भव: यही जीवन का सत्य हैहमें बचने के लिए सावधान करते हैं -'''शातिर लोग मीठा जब बोलतेआँसू गठरीयाद रखो किखुलकर बिखरीज़हर वे घोलतेहर कोशिशमैं समेटती जाऊँपर बाँध न पाऊँ इन पंक्तियों की व्यापकता देशकाल की सीमाओं से परे हर इंसान की नब्ज़ पर हाथ रखती है।मुस्कान बिखेरते ।'''