भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
17 bytes added,
13:37, 2 अक्टूबर 2007
सूरदास प्रभु संग नंद कैं बैठे हैं दोउ बारे ॥<br><br>
वार्थ भावार्थ :-- श्रीनन्दरानी हरिको हरि को पुकार रही हैं --`मेरे शार्ङ्गपाणि ! बहुत देर हो गयी, तुम अबतक अब तक कहाँ खेलते थे ? लाल ! तुम कबसे घरसे कब से घर से निकले हो, तुम्हारे बिना बाबा नन्द भोजन नहीं कर रहे हैं । गोपाल ! अब झटपट चलो ।' माताकी माता की पुकार सुनकर श्याम दौड़कर वहाँ आ गये । व्रजरानी यशोदाजीने मोहनको यशोदा जी ने मोहन को घर ले आकर तुरंत ही उनके चरण धोये । सूरदासके सूरदास के स्वामी व्रजराजके व्रजराज के दोनों बालक व्रजराज श्रीनन्दजी श्रीनन्द जी के साथ (भोजन करने) बैठे हैं ।